
भगत सिंह के बौद्धिक क्रांतिकारी आंदोलन से अंग्रेज डरते थे- प्रोफेसर चमनलाल
Chandigarh, September 25, 2024- शहीद भगत सिंह की जयंती के अवसर पर पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के उर्दू विभाग में एक विशेष लेक्चर का आयोजन किया गया। जिसमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर (सेवानिवृत्त) चमनलाल अतिथि वक्ता थे। कार्यक्रम की शुरुआत में विभाग के विद्यार्थियों ने शहीद भगत सिंह पर लिखी कविताएं और उनकी पसंदीदा उर्दू शायरी प्रस्तुत कीं।
Chandigarh, September 25, 2024- शहीद भगत सिंह की जयंती के अवसर पर पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के उर्दू विभाग में एक विशेष लेक्चर का आयोजन किया गया। जिसमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर (सेवानिवृत्त) चमनलाल अतिथि वक्ता थे। कार्यक्रम की शुरुआत में विभाग के विद्यार्थियों ने शहीद भगत सिंह पर लिखी कविताएं और उनकी पसंदीदा उर्दू शायरी प्रस्तुत कीं।
विभाग के अध्यक्ष डॉ. अली अब्बास ने अतिथि वक्ता का स्वागत करते हुए कहा कि प्रो. चमनलाल ने लगभग 65 पुस्तकों का लेखन एवं संकलन किया है। जिसमें शहीद भगत सिंह के संदर्भ में 25 किताबें भी शामिल हैं। डॉ. अब्बास ने मिर्जा गालिब और अन्य उर्दू शायरों की कविताओं का भी जिक्र किया है, जो भगत सिंह ने अपनी डायरी में लिखी थीं। उन्होंने आगे कहा कि इन कविताओं से भगत सिंह का उर्दू भाषा से प्रेम और उनकी शायरी की समझ का भी अंदाजा लगाया जा सकता है.
प्रोफेसर चमनलाल ने भगत सिंह और उर्दू भाषा विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि भगत सिंह का जन्म उर्दू परिवेश में हुआ था और उनके अधिकांश पत्र और दस्तावेज उर्दू में मिलते हैं। उन्होंने आगे कहा कि भगत सिंह भारत के ऐसे वीर रहनुमा थे जो न कभी जुल्म से डरे और न ही कभी गुलामी की जिंदगी जीने को तैयार हुए। उन्हों ने आगे कहा की वह न केवल ब्रिटिश सरकार के खिलाफ थे, बल्कि उन्होंने भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के साथ-साथ यहां के पूंजीपतियों से भी छुटकारा दिलाना जरूरी समझा, ताकि भारत की बागडोर भारतीय किसानों और मजदूरों के हाथ में रहे।
प्रो. चमनलाल ने भगत सिंह के उर्दू में लिखे दस्तावेज़ों और अनुवादित पुस्तकों की भी चर्चा की। भाषण के अंत में श्रोताओं ने उनसे कई महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे जिनके उन्होंने संतोषजनक और दिलचस्प उत्तर दिये।
इस कार्यक्रम का मंच संचालन विभाग के शोधार्थी मुहम्मद सुल्तान द्वारा किया गया। कार्यक्रम का समापन फ़ारसी विभाग के शिक्षक डॉ. जुल्फिकार अली द्वारा अतिथियों एवं अन्य प्रतिभागियों को धन्यवाद देकर किया गया।
